Monday, September 19, 2011

आ गए यहां जवां कदम




आ गए यहां जवां कदम जिन्‍दगी को ढूंढते हुए
गीत गा रहे हैं आज हम रागिनी को ढूंढते हुए.

अब दिलों में ये उमंग है, ये जहां नया बसायेंगे
जिन्‍दगी का दौर आज से दोस्‍तों को हम सिखायेंगे
फूल हम नए खिलायेंगे ताजगी को ढूंढते हुए

कोढ की तरह दहेज है आज देश के समाज में
है तबाह आज आदमी लूट पर टिके समाज में
हम समाज भी बनायेंगे आदमी को ढूंढते हुए
.
फिर न रो सके कोई दुल्‍हन जोर जुल्‍म का न हो निशां
मुस्‍करा उठे धरा गगन हम रचेंगे ऐसी दास्‍तां
यूं सजाएंगे वतन को हम हर खुशी को ढूंढते हुए
गीत गा रहे हैं आज हम जिंदगी को ढूंढते हुए.

-भुवनेश्‍वर

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