Monday, November 14, 2011

आजादी

शेरों को आजादी है, आजादी के पाबंद रहे,
जिसको चाहें चीरे-फाड़ें, खाए पियें आनंद रहे।

सापों को आजादी है हर बसते घर में बसने की,
उनके सर में जहर भी है और आदत भी है डसने की।

शाही को आजादी है, आजादी से परवाज करे,
नन्ही-मुन्नी चिड़ियों पर जब चाहे मश्के-नाज करें।

पानी में आजादी है घडियालों और निहंगो को,
जैसे चाहे पालें-पोसें अपनी तुंद उमंगो को।

इंसा ने भी शोखी सीखी वहशत के इन रंगों से,
शेरों, सापों, शाहीनो, घडियालों और निहंगो से।

इंसा भी कुछ शेर है, बाकी भेड़ की आबादी है,
भेडें सब पाबंद हैं लेकिन शेरों को आजादी है।

शेर के आगे भेडें क्या हैं, इक मनभाता खाजा है,
बाकी सारी दुनिया परजा, शेर अकेला राजा है।

भेडें लातादाद हैं लेकिन सबकों जान के लाले हैं,
उनको यह तालीम मिली है, भेडिए ताकत वाले हैं।

मांस भी खाएं, खाल भी नोचें, हरदम लागू जानो के,
भेडें काटें दौरे-गुलामी बल पर गल्लाबानो के।

भेडियों ही से गोया कायम अमन है इस आजादी का,
भेडें जब तक शेर न बन ले, नाम न ली आजादी का।

इंसानों में सांप बहुत हैं, कातिल भी, जहरीले भी,
उनसे बचना मुश्किल है, आजाद भी हैं, फुर्तीले भी।

सरमाए का जिक्र करो, मजदूर की उनको फ़िक्र नही,
मुख्तारी पर मरते हैं, मजबूर की उनको फ़िक्र नही।

आज यह किसका मुंह ले आए, मुंह सरमायेदारों के,
इनके मुंह में दांत नही, फल हैं खुनी तलवारों के।

खा जाने का कौन सा गुर है को इन सबको याद नही,
जब तक इनको आजादी है, कोई भी आजाद नही।

उसकी आजादी की बातें सारी झूठी बातें हैं,
मजदूरों को, मजबूरों को खा जाने की घातें हैं।

जब तक चोरों, राहजनो का डर दुनिया पर ग़ालिब है,
पहले मुझसे बात करे, जो आजादी का तालिब है।

-हफीज जालंधरी

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