Thursday, December 1, 2011

तरान-ए-आज़ाद


देशहित पैदा हुए हैं, देश पर मर जायेंगे !
मरते - मरते देश को जिन्दा मगर कर जायेंगे !


हमको पीसेगा फलक, चक्की में अपनी कब तलक 
ख़ाक बनकर आँख में उसकी बसर कर जायेंगे !


कर रही बर्गे-खिजा को वादे सरसर  दूर क्यों,
पेशवा-ए-फासले-गुल हैं खुद समर कर जायेंगे !


खाक में हमको मिलाने का तमाशा देखना,
तुख्म रेज़ी से नए पैदा शज़र कर जायेंगे !


नौ-नौ आंसू जो रुलाते हैं हमें, उनके लिए,
अश्क के सैलाब से बरपा हषर कर जायेंगे !


गर्दिशे-गिरदाब में डूबे तो कुछ परवा नहीं,
बहरे-हस्ती में नयी पैदा लहर कर जायेंगे !


क्या कुचलते हैं समझकर वो हमें बर्ग-हिना
अपने खूं से हाथ उनके तर-बतर कर जायेंगे !


नक़्शे-पा से क्या मिटाता तू हमें पीरे-फलक 
रहवरी का काम देंगे जो गुजर कर जायेंगे.


-आज़ाद 

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