Tuesday, June 5, 2012

इतिहास !

चीजें कितनी तेजी से जा रही हैं अतीत में!
अतीत से कथाओं में, कथाओं से मिथक में
और समय अनुपस्थित हो गया है
इन मिथकों के बीच
समकालीन कहाँ रह गया है कुछ भी........
सूरत और बाथे की लाशें पहुँच गयी हैं मुसोलिनी के कदमों के नीचे
और मुसोलिनी पहुँच गया है मनु के आश्रम में.....
और यह सब पहुँच गया है पाठ्यक्रम में.
हमारी स्मृतियाँ मुक्त हैं सदमों से,
सदमें मुक्त हैं संवेदना से, संवेदना दूर है विवेक से,
विवेक दूर है कर्म से.......
चीजें कितनी तेजी से जा रही है अतीत में,
और हम सबकुछ समय के एक ही फ्रेम में बैठकर
         निश्चिन्त हो रहे
भिवंडी की अधजली आत्माएँ,
सिन्धु घाटी की निस्तब्धता
         निस्संगता और वैराग्य के
         परदे में दफ़्न हैं.
इतिहास!
अब तुम्हें ही बनाना होगा समकालीन को 'समकालीन'.


-अंशु मालवीय 

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