Tuesday, November 27, 2012

हितवा दाल रोटी प हमनी के भरमवले बा


हितवा दाल रोटी प हमनी के भरमवले बा
आगे डेट बढ़वले बा ना।
 
जाने कब तक ले बिलमायी, हितवा देवे ना बिदाई
बिदा रोक रोक के नाहक में बुढ़ववले बा। आगे डेट...

बीते चाहता जवानी, हितवा एको बात ना मानी
बहुते कहे सुने से गेट प भेट करवले बा। आगे डेट...

बात करहु ना पाई देता तुरूते हटाई
माया मोह देखा के डहकवले बा। आगे डेट...

देवे नास्ता में गुड़ चना, जरल कच्चा रोटी खाना
बोरा टाट बिछाके धरती प सुतवले बा। आगे डेट...

गिनती बार बार मिलवावे, ओसहीं मच्छड़ से कटवावे
भोरे भरल बंद पैखाना प बैठवले बा। आगे डेट...

एको वस्त्रा ना देवे साबुन, कउनो बात के बा ना लागुन
नाई धोबी के बिना भूत के रूप बनवले बा। आगे डेट...

कवि दुर्गेंद्र अकारी, गइलें हितवा के दुआरी
हितवा बहुत दिन प महल माठा खिअइले बा। आगे डेट....

-दुर्गेंद्र अकारी

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