Sunday, April 7, 2013

कचोटती स्वतन्त्रता


तुम बेचते हो अपनी आँखों का शऊर, अपने हांथों की दृष्टि 
तुम बनाते हो लोइयाँ दुनियाभर की चीजों की 
    बिना एक कौर चखे 
अपनी महान आजादी के साथ तुम खटते हो गैरों के साथ 
जो तुम्हारी अम्मा को कलपाते हैं, उन्हें 
    धन्ना सेठ बनाने की आजादी के साथ 
    तुम स्वतन्त्र हो।

धरती पर गिरने के छिन ही वे सवार हो जाते हैं तुम्हारे सर पर 
उनकी झूठ चक्कियां पीसती हैं लगातार तुम्हारी जिंदगी 
हथेलियों से कनपटियाँ दाबे, महान आजादी से बिसूरते हो तुम 
    अंत:करन की स्वतंत्रता के साथ 
    तुम स्वतन्त्र हो।

तुम्हारा झूलता सर अलग जान पड़ता है गर्दन से 
लटकती हैं बाहें आजू-बाजू 
मटरगश्ती करते हो तुम अपनी महान आजादी में 
    बेरोजगारों की स्वतंत्रता के साथ 
    तुम स्वतन्त्र हो।

तुम प्यार करते हो देश को जिगरी दोस्त के सामान 
किसी रोज, वे, उसे बेच देते हैं, शायद अमरीका को 
साथ में तुम्हे भी, तुम्हारी महान आजादी समेत 
    हवाई अड्डा बनाने की स्वतंत्रता के साथ 
    तुम स्वतन्त्र हो।

वाल स्ट्रीट तुम्हारी गर्दन जकड़ती है,
सत्यानाश हो उसके हाथों का 
किसी दिन वे तुम्हें भेज देते हैं कोरिया 
अपनी महान आजादी से तुम भरते हो कब्र
    गुमनाम सैनिक हो जाने की स्वतंत्रता के साथ 
    तुम स्वतन्त्र हो।

लोहे का फाटक नहीं, परदा नहीं फरदे का,
टाट तक की ओट नहीं 
जरूरत ही क्या है तुम्हे स्वतंत्रता वरन करने की 
    तुम स्वतन्त्र हो।
नीली छतरी के नीचे कचोटने वाली है यह स्वतंत्रता








-नाजिम हिकमत 

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