Saturday, August 10, 2013

विदाई -देम्याँ बेदनी (रूसी कवि)

(यह एक रूसी कविता का भावानुवाद है जो "Soviet Russian Literature" पुस्तक से लिया गया है. अंग्रजी में इस कविता का नाम है -The Seeing-off)

जब मेरी माँ ने तड़पकर
विदा किया मुझे स्टेशन पर,
मेरे सगे रोक न पाए.
मेघ से घुमड़ते दिल के जज्बात को
आँसुओं की धार को.

"ओह, मेरे लाल, तू दिल से दूर न जा,
किस ओर जा रहा तू?
सेना में, यह तो बहुत बुरा है
रुक जा, रुक जा, रुक जा!

कितने बच्चे यहाँ रुके हुए हैं,
तू क्यों जाने को उद्धत है?
बोल्शेविक तेरे बिना
कर सकते है अच्छा काम.

अब बात हमारी मान, जल्दी कर
फेंक अपना भर्ती पत्र.
कैसे बन गया तू इतना
घृणित आशावादी!

देख, तेरी माँ संतप्त तेरे बिन 
पागल हो रही,
बहुत करना है काम रुक जा,
मत बन तू इतना निष्ठुर.

देख, सफलता का सूरज उग रहा है
खुशहाली की फसल लहलहा रही है
ज़मीन हमारी सोना उगलेगी
जो अत्याचारियों से छीनी है हमने.

और जिंदगी मदमस्त हो रही है,
झूम रही है  
अच्छा होगा, यहीं रुककर
खोजो अपने लिए एक दुल्हन सुंदर.

जिंदगी के मज़े लो
बाल-बच्चों संग
इतना सुनकर मैं
विनम्र हो झुका माँ के आगे.

मैं बुजुर्गों के आगे भी झुका
बूढ़ी महिलाओं को नमन किया
"ओ मेरे प्यारे हितचिंतकों
बहती बयार को कौन रोक सका है?

जो पुत्र स्नेह में बावले हो गये आप
ऐसी नाज़ुक बेला में
अत्याचारी जार फिर एक बार
खींचेगा अपनी खूनी तलवार.

दरिन्दा फिर वापस आ जाएगा
फैला लेगा अपना साम्राज्य
हम पछ्ताते रह जाएँगे
और खो देंगे अपनी ज़मीन और आज़ादी.

हिंस विषधर ज़मीदार
फुँकारेंगे फिर एक बार
उनके सैनिक ज़ुल्म ढाएँगे हमपर
और गुलामी का जुआँ लाद देंगे फिर
पहले से भारी.

आप लोग देख नहीं पा रहे हैं
आततायी जार को हराकर
हम खुशहाली लाएँगे
मैं छोड़े जा रहा हूँ अपनी माँ
उन्हें संभालना.

लाल सेना का शानदार अभियान
अनंत कष्ट उठाकर
मैं भी लड़ने जाउँगा
उन जिंदादिल लोगों के साथ.

अब वक्त नहीं गँवा सकता मैं
केवल वार्तालाप में
जल्दी उतार दूँगा अपना चाकू
जुल्मी सरमायादारी के सीने में

समर्पण नहीं संघर्ष है अपना नारा
मिलूँगा आपके पीटर महान से
पुरस्कार में
स्वर्ग बहुत मीठा होगा.

अलौकिक अचेत स्वर्ग नहीं
न ही उन ज़मींदारों का स्वर्ग
बल्कि जाउँगा अपनी महान पवित्र भूमि

सोवियत भूमि.

-देम्याँ बेदनी 

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