Wednesday, October 25, 2017

जिनके पास कम है, वे कम खाएँ (अमरीकी शासकों के प्रति)

ग़रीबों से नफरत, क्या ये गुनाह
बासी हो गया? कि इतना धन है
फिर भी  साजिश रचते हैं दौलतमन्द
एक बच्चे की दवा, एक औरत की जिंदगी,
एक आदमी का दिल और गुर्दा हड़पने के लिए.
जब सांसद उस जनता की बात करते हैं
जो हिसाब बैठाती है गैस और रोटी का
कि ठण्ड और भूख में किसे तरजीह दें
वे गुर्राते हैं. हमारी ये हिम्मत की जिन्दा रहें?
अगर वे बमबारी कर पाते, अगर वे
ग़रीबों के खिलाफ लड़ाई छेड़ पाते
दूसरे देशों की तरह यहाँ, अपने देश में,
क़ानून बनाकर नहीं बल्कि खुलेआम
हथियारों से, तो क्या वे झिझकते?
उनके भीतर सुलगता सच्चा गुस्सा
फूटता है उन कटौतियों में, जो जरूरी हैं
लोगों को जिन्दा रखने के लिए.
जिन लोगों के पास बहुत कम है
उनको सजा देते हैं, और ज्यादा कमी करके-
हमें कुचलनेवाला एक विराट कानूनी बुलडोजर.
–मार्ज पियर्सी

(अनुवाद — दिगम्बर)

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